आज के समय में जब मानव चाँद पर बस्तियाँ बनाने का सोच रहा हैं, रोबोट रेस्ट्रा में खाना खिलाता दिखता है तो हम कह सकते है मानव आधुनिकता के सभी पैमाने पर आगे बढ़ रहा है। परन्तु इस आधुनिकता के साथ एक और भी चर्चा प्रमुख है, वह है धर्म – अधर्म, सनातन – असनातन इत्यादि। एक खेमा सनातन के पक्ष में खड़ा है तो दूसरा विपक्ष में बैठा हो-हल्ला कर रहा है। मुझे तो यह महसूस होता है कि आज इन सारे शब्दों का सही अर्थ कही पीछे छूट गया है बस खोखले शब्द और खोखले भाव को लेकर लोग आपस में लड़े जा रहे।
धर्म, सनातन धर्म अपने आप में इतना कुछ समेटे है कि अगर इसको सही से समझे तो यह विरोध का विषय नहीं बल्कि मनुष्य की प्रगति का मार्ग है। मैं बहुत कुछ तो नहीं जानती पर अपने अध्ययन से जितना कुछ समझ पायी हूँ उसके आधार पर धर्म और सनातन धर्म के विषय में कुछ कहने का दुस्साहस कर रही हूँ। हो सकता है कि मेरे मत को कम लोग समझ पाये पर हमारे वैदिक ग्रंथों में धर्म और सनातन धर्म की यही परिभाषा दी गई है।
सबसे पहला प्रश्न या विवाद तो इस समय ‘धर्म’ पर चल रहा है तो सबसे पहली शुरुआत भी धर्म से ही करते है। धर्म की बात करें तो यह शब्द संस्कृत के ‘धृ’ धातु से बना है जिसका मतलब होता है धारण करना या पालन करना। अगर हम इसके शाब्दिक अर्थ को देखे तो जो अर्थ सामने आयेगा वह है – धारण करने योग्य आचरण ही धर्म है। धर्म का सटीक मायने होता है सही काम करना या अपने कर्तव्य पथ पर चलना। अर्थात हर व्यक्ति का अपना कर्तव्य है अगर वह अपने कर्तव्य को आधार बनाकर आचरण करता है तो वह अपने धर्म का पालन करता है।
दूसरा सबसे प्रमुख मुद्दा जो इस समय चल रहा है वह है ‘ सनातन धर्म ’। आज सनातन धर्म हिन्दू धर्म या वैदिक धर्म का पर्याय बन चुका है। इसलिए इसके बारे में बिना समझे लोग इसका विरोध करने लगे हैं। अगर उनसे पूछ लिया जाये कि सनातन धर्म क्या है तो उन्हें सनातन का ‘स’ भी नहीं पता होता ऐसे लोग सनातन धर्म की तुलना डेंगू, मलेरिया या कोरोना से करते है तो हास्यास्पद सा लगता है।
इन लोगों को सनातन का सही अर्थ प्रत्येक सनातनी को समझना चाहिए। ऐसे लोग जो बिना जाने समझे सनातन का विरोध करते है उन्हें सनातन धर्म को सही तरीके से समझाने का यह एक प्रयास है—
सनातन धर्म – सनातन धर्म का शाब्दिक अर्थ है “शाश्वत या सदा बना रहने वाला यानी जिसका न आदि है न अंत”
हिन्दू धर्म का पर्याय बन चुका सनातन धर्म दुनिया का सबसे प्राचीन धर्म है। यह धर्म ज्ञात रूप से लगभग 12000 वर्ष पुराना है। जबकि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार हिन्दू धर्म 90,000 वर्ष पुराना है। हालांकि 19 वीं सदी में सनातन धर्म ने सबसे ज्यादा लोकप्रियता हासिल की।
सनातन का अर्थ है – जो शाश्वत हो। जिन बातों का शाश्वत महत्व है वही सनातन कही गई। जैसे ‘सत्य’ सनातन है। ईश्वर ही सत्य है। आत्मा सत्य है, मोक्ष सत्य है और इस सत्य का मार्ग बतलाने वाला वैदिक धर्म या सनातन धर्म भी सत्य है। वैदिक धर्म या हिन्दू धर्म को इसलिए सनातन कहा जाता है क्योंकि यही एक मात्र धर्म है जो ईश्वर, आत्मा, मोक्ष आदि तत्वों को सत्य बतलाता है।
सनातन धर्म कोई पाखण्ड या आडम्बर वाला धर्म नहीं है बल्कि सनातन धर्म का मूल तत्त्व तो सत्य, अहिंसा, दया, क्षमा, दान, जप, तप, यम नियम आदि से जुड़ा हुआ है। इन सभी का शाश्वत महत्व है। यह सिद्धांत अन्य प्रमुख धर्मों के उदय के पूर्व ही प्रतिपादित कर दिया गया था। इसलिए सनातन वैदिक धर्म सबसे प्राचीन है।
अगर सही मायने में हम समझे तो सनातन धर्म या वैदिक धर्म का मूल सिद्धांत तीन तत्त्वों यानी – ज्ञान, योग, क्षेम पर कार्य करता है।
ज्ञान: – अर्थात् जो पता नहीं है उसे पता करो। उसकी खोज करो चाहे यह चिंतन, मनन और अनुभव से हो या शिक्षा और दर्शन से।
योग: – योग का अर्थ है जो अप्राप्य है अर्थात् जो आपके पास नहीं है उसे प्राप्त करना। इसलिए सनातन धर्म या वैदिक धर्म प्रश्न करने की आज़ादी देता है। प्रश्नों को लेकर सबसे ज्यादा सहिष्णु हमारा सनातन धर्म ही है। क्योंकि प्रश्नों के उत्तर से ही सही ज्ञान का उदय होता है। हमारा सनातन धर्म कभी यह नहीं कहता है जो लिखा है बस वही करो बल्कि वह कहता है कि अपना मार्ग स्वयं खोजो। भले ही सबके मार्ग अलग है पर मंजिल एक ही है। क्योंकि ईश्वर ही सत्य है। ईश्वर ही सनातन है और गुरु गौरंगदास प्रभु जी कहते है कि इस सनातन ईश्वर की सेवा करना ही सनातन धर्म कहलाता है।
क्षेम: – इसका अर्थ है ज्ञान और योग से प्राप्त दिव्य ज्ञान की रक्षा करना उसको मिटने न देना।
इसलिए जिसने भी इस सनातन ज्ञान को जान लिया है, उसे बचाने के लिए दिन – रात प्रयासरत है।
मैं यही पर अपनी बात को विराम देती हूँ।
जय सनातन धर्म
अरुणा शैब्या की कलम से….
Copyright © 2023 - Created by Aruna Shaibya.
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